बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्यसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य
प्रश्न- आचार्य शुक्ल जी के हिन्दी साहित्य के इतिहास के काल विभाजन का आधार कहाँ तक युक्तिसंगत है? तर्क सहित बताइये।
अथवा
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल द्वारा हिन्दी साहित्य के काल विभाजन का समय सीमा सहित नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर -
आचार्य शुक्ल ने अपने काल विभाजन एवं नामकरण का स्वरूप स्पष्ट करते हुए कहा है कि - "यद्यपि इन कालों की रचनाओं की विशेष प्रवृत्ति के अनुसार ही इनका नामकरण किया गया है पर यह नहीं समझना चाहिए कि किसी काल में और प्रकार की रचनाएँ होती ही नहीं थी। जैसे भक्तिकाल या रीतिकाल को ले तो उसमें वीर रस के अनेक काव्य मिलेंगे। जिसमें वीर राजाओं की प्रशंसा उसी ढंग की होगी जिस ढंग की वीरगाथाकाल में हुआ करती थी। किसी विशेष प्रवृत्ति मूलक रचनाओं की अधिकता से यह अभिप्राय है कि शेष दूसरी प्रवृत्तिमूलक रचनाओं में से यदि किसी एक प्रकार की रचनाओं को लें तो वे संख्या में उनके समान न हो।
इस काल विभाग का दूसरा आधार ग्रन्थों की प्रसिद्धि है। जिस काल के भीतर एक ही प्रवृत्ति वाले बहुत से प्रसिद्ध ग्रन्थ हैं, उस प्रकार के ग्रन्थ उस काल के लक्षण के अन्तर्गत मानें जायेंगे, चाहे और अनेक प्रकार के अप्रसिद्ध और साधारण कोटि के ग्रन्थ इधर-उधर पड़े हों। प्रसिद्धि भी किसी काल की लोक प्रवृत्ति की परिचायक है। सारांश यह है कि उक्त दोनों सिद्धान्तों को सामने रखकर ही विद्वान लेखक साहित्य के इतिहास का काल विभाजन एवं नामकरण करते हैं।
परम्परागत काल विभाजन पुनर्विचार - इस सम्बन्ध में सबसे पहला प्रयास करने का श्रेय जार्ज ग्रियर्सन को है। लेकिन उन्होंने स्वयं अपने ग्रन्थ की भूमिका में स्वीकार किया है कि उनके सामने अनेक ऐसी कठिनाइयाँ थी जिससे वे कालक्रम एवं काल विभाजन के निर्वाह में पूर्णतः सफल नहीं हो सके। उनका काल विभाजन इस प्रकार है- 1. चारणकाल 2. पन्द्रहवी शती का धार्मिक पुनर्जागरण, 3. जायसी की प्रेम कविता, 4. ब्रज का कृष्ण सम्प्रदाय 5. मुगल दरबार, 6. तुलसीदास 7. रीतिकाव्य, 8. तुलसीदास के अन्य परवर्ती, 9. अठ्ठारहवीं शताब्दी, 10 कम्पनी के शासन में हिन्दुस्तान 11. महारानी विक्टोरिया के शासन में हिन्दुस्तान।
इस प्रकार उनका ग्रन्थ इन ग्यारह कालखंडों में विभक्त हैं जो वस्तुतः युग विशेष के द्योतक कम है, अध्यायों के शरीर अधिक हैं, इसके अतिरिक्त कालक्रम का निर्वाह भी इसमें अविच्छिन्न रूप से नहीं चलता। जैसे चारणकाल के बाद एकाएक वे पन्द्रहवीं शती में पहुँच जाते हैं, पूरी चौदहवीं शती को वे इतिहास में से निकाल देते हैं। अस्तु ग्रियर्सन का यह प्रयास प्रारम्भिक प्रयास मात्र है, जिसमें विभिन्न न्यूनताओं, असंगतियों एवं त्रुटियों का होना स्वाभाविक है।
इसके बाद मिश्रबन्धुओं ने अपने 'मिश्रबन्धु विनोद' में काल विभाजन का नया प्रयास किया जो प्रत्येक दृष्टि से ग्रियर्सन के प्रयास से बहुत अधिक प्रौढ़ एवं विकसित कहा जा सकता है। उनका विभाजन इस प्रकार है -
1. प्रारम्भिक काल -
पूर्वारंभिक काल (900-1343 वि.)
उत्तरांरभिक काल (1344-1444 वि . )
2. माध्यमिक काल -
पूर्व माध्यमिक काल (1445 - 1560 वि.)
प्रौढ़ माध्यमिक काल (1561 - 1680 वि.)
3. अलंकृत काल -
पूर्वालंकृत काल (1681-1790 वि.)
उत्तरालंकृत काल (1791-1889 वि.)
4. परिवर्तनकाल (1890-1925 वि. )
5. वर्तमानकाल (1926 वि. से अब तक)
जहाँ तक पद्धति की बात है, यह वर्गीकरण बहुत सम्यक् एवं स्पष्ट है परन्तु तथ्यों की दृष्टि से इसमें भी अनेक विसंगतियाँ हैं। अस्तु इन दोषों के होते हुए भी मिश्रबन्धुओं का प्रयास पर्याप्त महत्वपूर्ण एवं प्रौढ़ है।
आचार्य शुक्ल के काल विभाजन में हम प्रारम्भिक काल की शुरूआत सं. 1050 से देखते हैं जो
यथार्थ के अधिक निकट है। दूसरे, इन्होंने मिश्रबन्धुओं के द्वारा किये गये भेदोपभेदों की कुल संख्या को दस से घटाकर चार तक सीमित कर दिया। इससे इनके काल विभाजन में अधिक सहजता, सरलता, सुबोधता एवं स्पष्टता आ गई है। अपनी इसी विशेषता के कारण वह बहुमान्य एवं बहुप्रचलित है।
शुक्ल जी के बाद के इतिहासकारों में से अनेक ने आचार्य शुक्ल के उपयुक्त काल विभाजन की निन्दा तो की किन्तु, किसी ने संशोधित करके नया रूप देने की कोशिश नहीं की केवल डॉ. रामकुमार वर्मा का ही नाम इस क्षेत्र में उल्लेखनीय है। उनका काल विभाजन निम्न रूप में है -
1. संधिकाल (750-1000 वि.)
2. चरणकाल (1000-1375 वि.)
3. चरणकाल (1375 से 1700 वि.)
4. रीतिकाल (1700 से 1900 वि. तक)
5. आधुनिककाल (1900 वि. से अब तक)
डॉ. वर्मा ने इस विभाजन के अन्तिम चार कालखंड तो आचार्य शुक्ल के ही विभाजन के अनुरूप है, केवल 'वीरगाथाकाल' के स्थान पर चारणकाल नाम अवश्य दे दिया गया है। इस विभाजन में 'संधिकाल' की कल्पना निश्चित रूप से एक भ्रान्ति को जन्म देती है। हिन्दी साहित्य का आरम्भ सातवीं- आठवीं शताब्दी से माना एक विशेष भ्रान्ति का परिणाम है इसलिए इसे शुक्ल के काल विभाजन का परिष्कृत रूप नहीं कहा जा सकता। फिर भी वर्मा जी ने किन्हीं अंशों में आचार्य शुक्ल की रूढ़ि को त्यागने का साहस अवश्य किया है जो इस युग के लिए कम महत्व की बात नहीं हैं।
इसी बीच डॉ. रामबहोरी शुक्ल एवं डॉ. भगीरथं मिश्र का 'हिन्दी साहित्य का उद्भव और विकास' ग्रन्थ भी प्रकाश में आया है जो प्रारम्भिकाल की सीमाओं में किंचित परिवर्द्धन और संशोधन करने के अतिरिक्त सामान्यतः आचार्य शुक्ल के ही अनुरूप है। डॉ. नगेन्द्र तथा आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र द्वारा लिखे गये इतिहास ग्रन्थों में भी थोड़ा बहुत किसी काल के विभाजन में भले ही नाम का परिवर्तन हो गया हो, शेष बातों में पूर्ववर्ती परम्परा का निर्वाह ही हुआ है।
इस प्रकार इस समय आचार्य शुक्ल के ही काल विभाजन को सर्वमान्य कहा जा सकता है, किन्तु इसका तात्पर्य यह नहीं है कि वह सर्वथा संगत एवं निर्दोष है। आचार्य शुक्ल ने जिन परिस्थितियों में इतिहास लेखन किया था, उस दृष्टि से यह ठीक है किन्तु विगत 50 वर्षों में हिन्दी के क्षेत्र में पर्याप्त अनुसंधान हुए जिसे ध्यान में रखने पर अनेक न्यूनताएँ एवं त्रुटियाँ स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होती हैं, जो निम्नवत् हैं -
(अ) पूर्ववर्ती इतिहासकारों ने तथा आचार्य शुक्ल ने अपभ्रंश साहित्य के सम्बन्ध में किसी स्पष्ट नीति का अनुसरण नहीं किया। शुक्लोत्तर इतिहासकारों की नीति तो इस सम्बन्ध में और भी भ्रामक एवं विचित्र है। कभी तो वे इसे हिन्दी साहित्य के अन्तर्गत समाविष्ट कर देते हैं और कभी इसे हिन्दी से भिन्न मानते हैं। वस्तुतः इस सम्बन्ध में हमें अब एक स्पष्ट नीति का अनुसरण करना होगा, या तो अपभ्रंश और हिन्दी को एक मानना होगा अथवा अपभ्रंश रचनाओं को हिन्दी साहित्य में स्थान देने का लोभ संवरण करना होगा।
(ब) जिन रचनाओं के आधार पर आचार्य रामचन्द्र शुक्ल तथा अन्य इतिहासकारों ने हिन्दी साहित्य के आरम्भिकाल, वीरगाथा काल या आदिकाल की स्थापना की थी, अब वे अस्तित्वहीन अप्रमाणिक या परवर्तीकाल की सिद्ध हो गई है तथा अन्य रचनाएँ हिन्दी की न होकर अपभ्रंश की हैं। इस प्रकार रचनाओं की दृष्टि से आचार्य शुक्ल का 'वीरगाथाकाल' बिल्कुल आधार शून्य सिद्ध होता है। कुछ विद्वानों ने इस स्थिति को सुधारने के लिए इस काल के नये नामकरण आदिकाल का सुझाव दिया।
(स) परम्परागत इतिहास ग्रन्थों में विभिन्न कालखंडों का नामकरण केवल एक प्रवृत्ति विशेष के आधार पर करना भी न्यायसंगत एवं वैज्ञानिक नहीं है। वीरगाथाकाल की असंगति तो ऊपर वर्जित हो चुकी है। भक्तिकाल एवं रीतिकाल भी दोषमुक्त नहीं है। क्योंकि इसमें केवल भक्ति एवं रीति की ही प्रवृत्ति नहीं है। अपितु अन्य प्रवृत्तियाँ भी हैं। एक प्रवृत्ति को ही प्रधानता देने एवं शेष को गौण मानकर फुटकर खाते में डाल देने का परिणाम यह हुआ कि इस समय विभिन्न युगों का अधूरा एवं एकपक्षीय रूप ही हमारे सामने आ पाता है। अस्तु इसमें विभिन्न युगों का नामकरण इस प्रकार किया जाना चाहिए जिससे युग की विभिन्न प्रवृत्तियों के साथ न्याय हो सकें।
(द) नये अनुसंधान से अधिक नयी रचनाओं एवं काव्य परम्पराओं का भी उद्घाटन हुआ है। जिन्हें साहित्य के इतिहास में स्थान देना आवश्यक है। इसके लिए भक्तिकाल के चार उपखंडों के अतिरिक्त अन्य खंडों में विभक्त करना होगा जिससे उन रचनाओं को भी किसी उपखंड में स्थान दिया जा सके।
(य) 'भक्तिकाल' में प्रवर्तित होने वाली सभी काव्य परम्पराएँ आधुनिक काल के प्रारम्भ तक अखंड रूप से चलती रहती है, अतः भक्तिकाल को रीतिकाल से सर्वथा विच्छिन्न मानना भी ठीक नहीं है।
उपरोक्त असंगतियों एवं त्रुटियों को ध्यान में रखकर डॉ. गणपति चन्द्र गुप्त ने नये काल विभाजन की रूपरेखा प्रस्तुत की। उन्होंने 'हिन्दी साहित्य का वैज्ञानिक इतिहास लिखा और निम्नलिखित काल विभाजन किया। उन्होंने सबसे पहले हिन्दी साहित्य के इतिहास को दो बड़े कालखंडों में विभक्त किया। पहला 1857 ई. के पहले का समय और दूसरा उसके बाद का समय। जिस प्रकार हमारे राजनीति इतिहास में 1857 ई. एक ऐसी विभाजक रेखा है जिससे मुस्लिम राज्य की समाप्ति तथा ब्रिटिश शासन का आरम्भ होता है उसी प्रकार हिन्दी साहित्य के इतिहास में भी यह पुराने युग की समाप्ति एवं नये युग के आरम्भ की सूचक है। आचार्य शुक्ल ने भी इसी समय के आस-पास (सन् 1843 ई. अर्थात्, 1900 विक्रमी) से नये युग का आरम्भ माना है। इस तरह इस काल के नामकरण के बारे में विद्वानों में सामान्यतः मतैक्य है। कठिनाई इससे पहले के कालखंडों के बारे में हैं। पूर्ववर्ती काल को भी उन्होंने मोटे रूप में दो खंडों में विभक्त किया है- प्राचीन काल और मध्यकाल। मध्यकाल की दीर्घता को ध्यान में रखते हुए उसे भी दो उपखंडों में विभक्त किया है-
1. पूर्व मध्यकाल (1350 से 1600 ई. तक),
2. उत्तर मध्यकाल (सन् 1600 ई. से 1857 ई.)
उपर्युक्त काल विभाजन को संक्षेप में इस प्रकार किया जा सकता है।
(1) आदिकाल (सन् 884 - 1350 ई. तक )
(2) पूर्व मध्यकाल (सन् 1350 ई. - 1600 ई. तक ) .
(3) उत्तर मध्यकाल (सन् 1600 - 1857 ई. तक)
(4) आधुनिक काल (सन् 1857 - से अब तक)
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- प्रश्न- भारतीय ज्ञान परम्परा और हिन्दी साहित्य पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा में शुक्लोत्तर इतिहासकारों का योगदान बताइए।
- प्रश्न- प्राचीन आर्य भाषा का परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
- प्रश्न- मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषाओं का संक्षिप्त परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
- प्रश्न- आधुनिक आर्य भाषा का परिचय देते हुए उनकी विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- हिन्दी पूर्व की भाषाओं में संरक्षित साहित्य परम्परा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- वैदिक भाषा की ध्वन्यात्मक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य का इतिहास काल विभाजन, सीमा निर्धारण और नामकरण की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- आचार्य शुक्ल जी के हिन्दी साहित्य के इतिहास के काल विभाजन का आधार कहाँ तक युक्तिसंगत है? तर्क सहित बताइये।
- प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- आदिकाल के साहित्यिक सामग्री का सर्वेक्षण करते हुए इस काल की सीमा निर्धारण एवं नामकरण सम्बन्धी समस्याओं का समाधान कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य में सिद्ध एवं नाथ प्रवृत्तियों पूर्वापरिक्रम से तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- नाथ सम्प्रदाय के विकास एवं उसकी साहित्यिक देन पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- जैन साहित्य के विकास एवं हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में उसकी देन पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- सिद्ध साहित्य पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- आदिकालीन साहित्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य में भक्ति के उद्भव एवं विकास के कारणों एवं परिस्थितियों का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- भक्तिकाल की सांस्कृतिक चेतना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कृष्ण काव्य परम्परा के प्रमुख हस्ताक्षरों का अवदान पर एक लेख लिखिए।
- प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
- प्रश्न- उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल ) की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, काल सीमा और नामकरण, दरबारी संस्कृति और लक्षण ग्रन्थों की परम्परा, रीति-कालीन साहित्य की विभिन्न धारायें, ( रीतिसिद्ध, रीतिमुक्त) प्रवृत्तियाँ और विशेषताएँ, रचनाकार और रचनाएँ रीति-कालीन गद्य साहित्य की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य प्रवृत्तियों का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी के रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- बिहारी रीतिसिद्ध क्यों कहे जाते हैं? तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
- प्रश्न- रीतिकाल को श्रृंगार काल क्यों कहा जाता है?
- प्रश्न- आधुनिक काल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
- प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु युग के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- भारतेन्दु युग के गद्य की विशेषताएँ निरूपित कीजिए।
- प्रश्न- द्विवेदी युग प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- द्विवेदी युगीन कविता के चार प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिये। उत्तर- द्विवेदी युगीन कविता की चार प्रमुख प्रवृत्तियां निम्नलिखित हैं-
- प्रश्न- छायावादी काव्य के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- छायावाद के दो कवियों का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- छायावादी कविता की पृष्ठभूमि का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- उत्तर छायावादी काव्य की विविध प्रवृत्तियाँ बताइये। प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, नयी कविता, नवगीत, समकालीन कविता, प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोगवादी काव्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की सामान्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी की नई कविता के स्वरूप की व्याख्या करते हुए उसकी प्रमुख प्रवृत्तिगत विशेषताओं का प्रकाशन कीजिए।
- प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- गीत साहित्य विधा का परिचय देते हुए हिन्दी में गीतों की साहित्यिक परम्परा का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- गीत विधा की विशेषताएँ बताते हुए साहित्य में प्रचलित गीतों वर्गीकरण कीजिए।
- प्रश्न- भक्तिकाल में गीत विधा के स्वरूप पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
- अध्याय - 13 विद्यापति (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- विद्यापति पदावली में चित्रित संयोग एवं वियोग चित्रण की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति की पदावली के काव्य सौष्ठव का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति की सामाजिक चेतना पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति भोग के कवि हैं? क्यों?
- प्रश्न- विद्यापति की भाषा योजना पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति के बिम्ब-विधान की विलक्षणता का विवेचना कीजिए।
- अध्याय - 14 गोरखनाथ (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- गोरखनाथ का संक्षिप्त जीवन परिचय दीजिए।
- प्रश्न- गोरखनाथ की रचनाओं के आधार पर उनके हठयोग का विवेचन कीजिए।
- अध्याय - 15 अमीर खुसरो (व्याख्या भाग )
- प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
- अध्याय - 16 सूरदास (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- सूरदास के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- "सूर का भ्रमरगीत काव्य शृंगार की प्रेरणा से लिखा गया है या भक्ति की प्रेरणा से" तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
- प्रश्न- सूरदास के श्रृंगार रस पर प्रकाश डालिए?
- प्रश्न- सूरसागर का वात्सल्य रस हिन्दी साहित्य में बेजोड़ है। सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- पुष्टिमार्ग के स्वरूप को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए?
- प्रश्न- हिन्दी की भ्रमरगीत परम्परा में सूर का स्थान निर्धारित कीजिए।
- अध्याय - 17 गोस्वामी तुलसीदास (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- तुलसीदास का जीवन परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- तुलसी की भाव एवं कलापक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- अयोध्याकांड के आधार पर तुलसी की सामाजिक भावना के सम्बन्ध में अपने समीक्षात्मक विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- "अयोध्याकाण्ड में कवि ने व्यावहारिक रूप से दार्शनिक सिद्धान्तों का निरूपण किया है, इस कथन पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- अयोध्याकाण्ड के आधार पर तुलसी के भावपक्ष और कलापक्ष पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'तुलसी समन्वयवादी कवि थे। इस कथन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- तुलसीदास की भक्ति भावना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- राम का चरित्र ही तुलसी को लोकनायक बनाता है, क्यों?
- प्रश्न- 'अयोध्याकाण्ड' के वस्तु-विधान पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 18 कबीरदास (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- कबीर का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- कबीर के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कबीर के काव्य में सामाजिक समरसता की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- कबीर के समाज सुधारक रूप की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- कबीर की कविता में व्यक्त मानवीय संवेदनाओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कबीर के व्यक्तित्व पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 19 मलिक मोहम्मद जायसी (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- मलिक मुहम्मद जायसी का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जायसी के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जायसी के सौन्दर्य चित्रण पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जायसी के रहस्यवाद का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- अध्याय - 20 केशवदास (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- केशव को हृदयहीन कवि क्यों कहा जाता है? सप्रभाव समझाइए।
- प्रश्न- 'केशव के संवाद-सौष्ठव हिन्दी साहित्य की अनुपम निधि हैं। सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षेप में जीवन-परिचय दीजिए।
- प्रश्न- केशवदास के कृतित्व पर टिप्पणी कीजिए।
- अध्याय - 21 बिहारीलाल (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- बिहारी की नायिकाओं के रूप-सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बिहारी के काव्य की भाव एवं कला पक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- बिहारी की बहुज्ञता पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- बिहारी ने किस आधार पर अपनी कृति का नाम 'सतसई' रखा है?
- प्रश्न- बिहारी रीतिकाल की किस काव्य प्रवृत्ति के कवि हैं? उस प्रवृत्ति का परिचय दीजिए।
- अध्याय - 22 घनानंद (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- घनानन्द का विरह वर्णन अनुभूतिपूर्ण हृदय की अभिव्यक्ति है।' सोदाहरण पुष्टि कीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द के वियोग वर्णन की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- घनानन्द का जीवन परिचय संक्षेप में दीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द के शृंगार वर्णन की व्याख्या कीजिए।
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- अध्याय - 23 भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की शैलीगत विशेषताओं को निरूपित कीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की भाव-पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की भाषागत विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु जी के काव्य की कला पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए। उत्तर - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की कलापक्षीय कला विशेषताएँ निम्न हैं-
- अध्याय - 24 जयशंकर प्रसाद (व्याख्या भाग )
- प्रश्न- सिद्ध कीजिए "प्रसाद का प्रकृति-चित्रण बड़ा सजीव एवं अनूठा है।"
- प्रश्न- जयशंकर प्रसाद सांस्कृतिक बोध के अद्वितीय कवि हैं। कामायनी के संदर्भ में उक्त कथन पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 25 सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (व्याख्या भाग )
- प्रश्न- 'निराला' छायावाद के प्रमुख कवि हैं। स्थापित कीजिए।
- प्रश्न- निराला ने छन्दों के क्षेत्र में नवीन प्रयोग करके भविष्य की कविता की प्रस्तावना लिख दी थी। सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
- अध्याय - 26 सुमित्रानन्दन पन्त (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- पंत प्रकृति के सुकुमार कवि हैं। व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- 'पन्त' और 'प्रसाद' के प्रकृति वर्णन की विशेषताओं की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए?
- प्रश्न- प्रगतिवाद और पन्त का काव्य पर अपने गम्भीर विचार 200 शब्दों में लिखिए।
- प्रश्न- पंत के गीतों में रागात्मकता अधिक है। अपनी सहमति स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- पन्त के प्रकृति-वर्णन के कल्पना का अधिक्य हो इस उक्ति पर अपने विचार लिखिए।
- अध्याय - 27 महादेवी वर्मा (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- महादेवी वर्मा के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का उल्लेख करते हुए उनके काव्य की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- "महादेवी जी आधुनिक युग की कवियत्री हैं।' इस कथन की सार्थकता प्रमाणित कीजिए।
- प्रश्न- महादेवी वर्मा का जीवन-परिचय संक्षेप में दीजिए।
- प्रश्न- महादेवी जी को आधुनिक मीरा क्यों कहा जाता है?
- प्रश्न- महादेवी वर्मा की रहस्य साधना पर विचार कीजिए।
- अध्याय - 28 सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- 'अज्ञेय' की कविता में भाव पक्ष और कला पक्ष दोनों समृद्ध हैं। समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 'अज्ञेय नयी कविता के प्रमुख कवि हैं' स्थापित कीजिए।
- प्रश्न- साठोत्तरी कविता में अज्ञेय का स्थान निर्धारित कीजिए।
- अध्याय - 29 गजानन माधव मुक्तिबोध (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- मुक्तिबोध की कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- मुक्तिबोध मनुष्य के विक्षोभ और विद्रोह के कवि हैं। इस कथन की सार्थकता सिद्ध कीजिए।
- अध्याय - 30 नागार्जुन (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- नागार्जुन की काव्य प्रवृत्तियों का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- नागार्जुन के काव्य के सामाजिक यथार्थ के चित्रण पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
- प्रश्न- अकाल और उसके बाद कविता का प्रतिपाद्य लिखिए।
- अध्याय - 31 सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' (व्याख्या भाग )
- प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'धूमिल की किन्हीं दो कविताओं के संदर्भ में टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सुदामा पाण्डेय 'धूमिल' के संघर्षपूर्ण साहित्यिक व्यक्तित्व की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।
- प्रश्न- धूमिल की रचनाओं के नाम बताइये।
- अध्याय - 32 भवानी प्रसाद मिश्र (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र के काव्य की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र की कविता 'गीत फरोश' में निहित व्यंग्य पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 33 गोपालदास नीरज (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- कवि गोपालदास 'नीरज' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'तिमिर का छोर' का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ' कविता की मूल संवेदना स्पष्ट कीजिए।